करुण रस परिभाषा, उदाहरण व महत्वपूर्ण प्रश्न

नमस्कार दोस्तो आज के इस आर्टिकल में हम करुण रस के बारे में बात करेंगे । रस हिंदी व्याकरण का महत्वपूर्ण टॉपिक है । करुण रस हिंदी व्याकरण में रस का प्रकार है । यदि आप भी करुण रस परिभाषा और उदाहरण को समझना चाहते है तो आज के इस आर्टिकल को अंत तक जरूर पढ़ें । 

हिंदी व्याकरण में रस का अर्थ आनंद होता है । यानी कि किसी काव्य को पढ़ते समय हमें उसके अनुभव के आनंद की प्राप्ति होती है वही रस है । रस के बिना हिंदी काव्य अधूरा होता है । रस से काव्य में सौंदर्यता बढ़ती है और काव्य को अनुभव किया जा सकता है ।

हिंदी व्याकरण के छंद व अलंकार रस के महत्वपूर्ण अवयव है । रस के द्वारा काव्य को पढ़ने या सुनने से आनंद मिलता है । रस के द्वारा काव्य के भाव की अनुभूति की जाती है । रस के बिना काव्य के भाव की अनुभूति सम्भव नही है । रस के छह माने गए हैं जो कि कटु, अम्ल, मधुर, लवण, तिक्त और कषाय है । 

करुण रस

हिंदी व्याकरण में रस की परिभाषा – हिंदी काव्य को पढ़ते या सुनते समय हमें जिस आनंद की अनुभूति होती है उसे रस कहते है । 

उदाहरण : हाथी जैसी देह, गेंडे जैसी खाल

तरबूजे से खोपडी, खरबूजे से बाल

उपरोक्त काव्य में हास्य रस है क्योंकि इस काव्य में हास्य अनुभूति हो रही है ।

रस के भाव 

हिंदी व्याकरण में रस के चार भाव होते है –

1. स्थायी भाव

2. विभाव

3. अनुभाव

4. संचारी भाव

करुण रस शोक स्थायी भाव के अंतर्गत आता है । 

करुण रस

करुण रस काव्य में शोक अनुभूति का आनंद देता है । किसी काव्य से शोक अनुभव करुण रस के द्वारा होती है । करुण रस स्थायी भाव होता है । काव्य में करुण रस का प्रयोग किसी अपने का नुकसान, प्रेम वियोग, दुख, बिछड़ जाने, द्रव्यनाश या वेदना के लिए किया जाता है । करुण रस के द्वारा काव्य में दुख व वेदना की अनुभूति होती है । 

करुण रस की परिभाषा

“जिस रस के द्वारा हृदय में शोक का भाव आता है, उसे करुण रस कहते हैं ।”

करुण रस द्वारा केवल दुखात्मक भाव उत्पन्न होता है । श्रृंगार रस और वीर रस करुण रस के विरोधी रस माने गए हैं तथा मोह, विषाद, अपस्मार, उन्माद और अश्रु करुण रस के संचारी भाव है । श्रृंगार रस में सुख और दुख दोनों भाग उत्पन्न होते हैं लेकिन इस रस में केवल दुख के भाव उत्पन्न होते हैं । ऐसी स्थिति जहाँ पुनः मिलने की आशा समाप्त होती है यानी कि स्थायी बिछड़ने के लिए करुण रस का प्रयोग किया जाता है । हिंदी व्याकरण के काव्याचार्यो ने करुण रस का लक्षण रुढिगत रूप में बताया है ।

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हिंदी व्याकरण के काव्याचार्यो के मुताबिक करुण रस 

धनंजय के मुताबिक करुण रस -“इष्टनाशादनिष्टाप्तौ

शोकात्मा करुणोऽनुतम्”

विश्वनाथ के मुताबिक करुण रस – “इष्टनाशादनिष्टाप्तेः

करुणाख्यो रसो भवेत”

चिन्तामणि के मुताबिक करुण रस – “इष्टनाश कि अनिष्ट की, आगम ते जो होइ। दुःख सोक थाई जहाँ, भाव करुन सोइ”

देव के मुताबिक करुण रस – “विनठे ईठ अनीठ सुनि, मन में उपजत सोग | आसा छूटे चार विधि, करुण बखानत लोग”

करुण रस के उदाहरण 

उदाहरण 1 : “हाय राम कैसे झेलें हम अपनी लज्जा अपना शोक गया हमारे ही हाथों से अपना राष्ट्र पिता परलोक हुआ न यह भी भाग्य अभागा किस पर विकल गर्व यह जागा रहे स्मरण ही आते सखि वे मुझसे कहकर जाते” ।

उदाहरण 2 : अभी तो मुकुट बंधा था माथ हुए कल ही हल्दी के हाथ खुले भी न थे लाज के बोल खिले थे चुम्बन शून्य कपोल हाय रुक गया यहीं संसार बना सिंदूर अनल अंगार वातहत लतिका वह सुकुमार पड़ी है छिन्नाधार ।

उदाहरण 3 : रही खरकती हाय शूल-सी, पीडा उर मे दशरथ के ।

उदाहरण 4 : गाचन, तास, वेदना चवमबडत, शाप कथा वे कह न सके ।

उदाहरण 5 : शोक विकल सब रोवहिं रानी, रूप सीलु सबु देखु बखानी करहिं विलाप अनेक प्रकारा परिहिं भूमि तल बारहिं बारा । 

उदाहरण 6 : जिस आंगन में पुत्र शोक से बिलख रही हो माता वहां पहुँच कर स्वाद जीभ का तुमको कैसे भाता । पति के चिर वियोग में व्याकुल युवती विधवा रोती बड़े चाव से पंगत खाते तुम्हे पीर नही होती ।

उदाहरण 7 : ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आंख में भर लो पानी जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी जब घायल हुआ हिमालय, खतरे में पड़ी आजादी 

जब तक थी सांस लड़े वो फिर अपनी लाश बिछा दी ।

उदारहण 8 : सीता गई तुम भी चले मै भी न जिऊंगा यहाँ, सुग्रीव बोले साथ में सब जाएँगे वानर वहाँ ।

उदाहरण 9 : राम राम कही राम कहि राम राम कहि राम, तनु परिहरि रघुबर बिरह राउ गयऊ सुरधाम ।

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