Russian Oil Import: रूस ने कहा तेल का पेमेंट युआन में करो

भारत और रूस के बीच पेमेंट को लेकर बड़ा बदलाव

रूस और भारत के बीच तेल व्यापार में इस बार कुछ बड़ा बदलने जा रहा है। अब तक भारत रूस से तेल खरीदते वक्त ज्यादातर डॉलर या दिरहम में पेमेंट करता था, लेकिन अब रूस ने साफ कह दिया है कि आगे से वो चीनी युआन में पेमेंट लेना चाहता है। ये बात सिर्फ एक बिज़नेस डील नहीं है बल्कि दुनिया की अर्थव्यवस्था के खेल में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। रूस की इस चाल से एक तरफ अमेरिका की करंसी डॉलर पर थोड़ा प्रेशर बनेगा, तो दूसरी तरफ भारत को भी अपनी स्ट्रैटेजी में कुछ बदलाव करने पड़ सकते हैं। इस कदम का असर आने वाले समय में न सिर्फ पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर पड़ेगा बल्कि दुनिया में चल रही पॉलिटिक्स पर भी दिखाई दे सकता है।

युआन में पेमेंट करने की मांग का मतलब क्या है

अब ये सवाल उठता है कि रूस ने अचानक युआन में पेमेंट की मांग क्यों की। असल में रूस अब डॉलर पर निर्भरता कम करना चाहता है क्योंकि अमेरिका और यूरोप ने उस पर कई तरह के आर्थिक दबाव डाले हैं। चीन और रूस के बीच पहले से अच्छे रिश्ते हैं, और युआन को ग्लोबल मार्केट में मजबूत करने की कोशिश भी लंबे समय से चल रही है। अगर भारत युआन में पेमेंट शुरू करता है तो ये चीन की करंसी को और ताकत देगा। इसके अलावा रूस को डॉलर के रास्ते से होकर पेमेंट नहीं लेना पड़ेगा, जिससे उसे अमेरिकी सैंक्शन का भी असर कम झेलना पड़ेगा।

भारत के लिए ये फैसला कितना फायदेमंद या नुकसानदायक

भारत के लिए ये फैसला आसान नहीं होगा। एक तरफ रूस से सस्ता तेल मिलने का फायदा है, तो दूसरी तरफ युआन में पेमेंट करना एक नया रिस्क भी लाएगा। भारत की अपनी करेंसी रुपए को भी इस फैसले से कुछ झटका लग सकता है क्योंकि इंटरनेशनल मार्केट में युआन की पकड़ बढ़ेगी। इसके अलावा चीन और भारत के बीच पहले से कई मुद्दों पर तनाव भी रहता है, तो ऐसे में युआन में पेमेंट करना एक स्ट्रैटेजिक और सोच समझकर लिया जाने वाला कदम होगा। अगर भारत इसे मान लेता है तो आने वाले वक्त में उसे चीन पर थोड़ा आर्थिक रूप से डिपेंड भी होना पड़ सकता है।

डॉलर पर कम होती पकड़ और नया ग्लोबल गेम

अब तक पूरी दुनिया में तेल का कारोबार ज्यादातर डॉलर में ही होता था और इसी वजह से डॉलर को ग्लोबल करंसी माना जाता रहा है। लेकिन अब रूस और कुछ दूसरे देश इस सिस्टम को बदलने की कोशिश कर रहे हैं। अगर भारत ने भी युआन में पेमेंट करना शुरू कर दिया तो ये डॉलर के लिए एक छोटा नहीं बल्कि बड़ा झटका होगा। इससे कई और देश भी डॉलर से हटकर दूसरे करेंसी ऑप्शन देखने लगेंगे। धीरे-धीरे ग्लोबल ट्रेड में डॉलर की पकड़ कमजोर पड़ सकती है और चीन की करेंसी युआन नई ताकत के रूप में उभर सकती है।

तेल की कीमतों पर क्या असर पड़ेगा

तेल की कीमतों पर इसका सीधा असर पड़ सकता है। अगर भारत युआन में पेमेंट करता है और रूस के साथ उसका तेल का सौदा और आसान बन जाता है तो इससे पेट्रोल और डीजल की कीमतें थोड़ा स्टेबल रह सकती हैं। लेकिन अगर ये प्रोसेस जटिल हो गया तो कीमतों में हलचल भी देखी जा सकती है। इसके अलावा करेंसी कन्वर्जन और पेमेंट प्रोसेस में आने वाले बदलावों से भी कुछ समय के लिए मार्केट में उतार-चढ़ाव देखने को मिल सकता है।

चीन को मिलेगा बड़ा फायदा

इस पूरे गेम में चीन को सबसे बड़ा फायदा मिलेगा क्योंकि उसकी करेंसी युआन को इंटरनेशनल मार्केट में और पावर मिलेगी। जब कोई बड़ा देश युआन में ट्रेड करता है तो बाकी देश भी उसे सीरियसली लेना शुरू कर देते हैं। इससे चीन की पोजिशन और स्ट्रॉन्ग होगी और वो डॉलर को टक्कर देने की अपनी स्ट्रैटेजी में एक कदम और आगे बढ़ जाएगा। रूस और चीन पहले से एक-दूसरे के करीब हैं, और अगर भारत भी इस सर्कल में आ गया तो चीन की पकड़ और मजबूत हो सकती है। Russian Oil Import: रूस ने कहा तेल का पेमेंट युआन में करो

भारत की अगली चाल क्या होगी

अब सबकी नजर इस बात पर है कि भारत इस मामले में क्या फैसला लेता है। भारत एक तरफ सस्ता तेल नहीं छोड़ना चाहता और दूसरी तरफ वो चीन पर ज्यादा निर्भर भी नहीं होना चाहता। ऐसे में भारत शायद कोई बीच का रास्ता निकाले जहां युआन में कुछ हिस्सा पेमेंट हो और बाकी रुपए या किसी और करेंसी में। इसके अलावा भारत अपने ट्रेडिंग सिस्टम को थोड़ा मॉडिफाई करके भी इस डील को बैलेंस करने की कोशिश कर सकता है।

ग्लोबल ट्रेड पर असर पड़ना तय

रूस, भारत और चीन जैसे बड़े देशों के बीच अगर डॉलर की जगह युआन में पेमेंट शुरू होता है तो इसका असर ग्लोबल ट्रेड पर पड़ेगा ही। इससे अमेरिका की पॉलिसी पर भी दबाव बनेगा और हो सकता है आने वाले वक्त में कई देश मिलकर कोई नया सिस्टम बना लें। ये पूरी कहानी सिर्फ तेल की कीमतों की नहीं बल्कि दुनिया में बदलते पावर बैलेंस की भी है।

निष्कर्ष

रूस के इस कदम से एक बात साफ हो गई है कि अब डॉलर का एकाधिकार धीरे-धीरे कमजोर हो सकता है। अगर भारत इस कदम को मान लेता है तो आने वाले कुछ सालों में ग्लोबल ट्रेड का चेहरा काफी हद तक बदल सकता है। चीन को आर्थिक फायदा होगा, रूस को अमेरिकी दबाव से राहत मिलेगी और भारत को सस्ते तेल का फायदा मिल सकता है। लेकिन इसके साथ ही कई स्ट्रैटेजिक चुनौतियां भी आएंगी। अब देखना ये होगा कि भारत इस नए आर्थिक गेम में क्या चाल चलता है।

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